मेरी डायरी से
सितम्बर,२००७
हमेशा हम तभी कुछ कहते हैं जब सामने कोई सुनने वाला हो,हमेशा हम तभी गाते हैं जब सामने कोई तारीफ करने वाला हो.कभी खुद से बातें करें-कितना आनंद आता है,कभी खुद के लिए अकेले में गाएं-कितना सुकून मिलता है.लोग बाथरूम में क्यों गाते हैं?क्योंकि उन्हें लगता है कि वो अच्छा नहीं गाते और वहां उन्हें सुनने वाला कोई नहीं है,शायद इसलिए भी कि सुनने वाला उनकी तारीफ नहीं कर पायेगा और वो छिपने की एक अच्छी जगह खोज लेते हैं.लोग इसीलिए सबके साथ बैठ कर चुटकुले सुनाते हैं और हंसते-मुस्कुराते हैं क्योंकि अकेले में हंसना-मुस्कुराना उन्हें अजीब लगता हैं.लेकिन मज़ा तो तब है जब कभी-कभी आप खुद ही कहें-खुद की सुनें,गाएँ भी तो सिर्फ अपने लिए गाएँ और मुस्कुराएँ भी तो सिर्फ अपने लिए मुस्कुराएँ--सच में बड़ा मज़ा आता है कि सामने वाला सोंचे और ये अंदाजा लगाये कि आप किस बात पर मुसकुरा रहें हैं ??? या कहीं आप पागल तो नहीं ???
सितम्बर,२००७
हमेशा हम तभी कुछ कहते हैं जब सामने कोई सुनने वाला हो,हमेशा हम तभी गाते हैं जब सामने कोई तारीफ करने वाला हो.कभी खुद से बातें करें-कितना आनंद आता है,कभी खुद के लिए अकेले में गाएं-कितना सुकून मिलता है.लोग बाथरूम में क्यों गाते हैं?क्योंकि उन्हें लगता है कि वो अच्छा नहीं गाते और वहां उन्हें सुनने वाला कोई नहीं है,शायद इसलिए भी कि सुनने वाला उनकी तारीफ नहीं कर पायेगा और वो छिपने की एक अच्छी जगह खोज लेते हैं.लोग इसीलिए सबके साथ बैठ कर चुटकुले सुनाते हैं और हंसते-मुस्कुराते हैं क्योंकि अकेले में हंसना-मुस्कुराना उन्हें अजीब लगता हैं.लेकिन मज़ा तो तब है जब कभी-कभी आप खुद ही कहें-खुद की सुनें,गाएँ भी तो सिर्फ अपने लिए गाएँ और मुस्कुराएँ भी तो सिर्फ अपने लिए मुस्कुराएँ--सच में बड़ा मज़ा आता है कि सामने वाला सोंचे और ये अंदाजा लगाये कि आप किस बात पर मुसकुरा रहें हैं ??? या कहीं आप पागल तो नहीं ???
पूनम जी
जवाब देंहटाएंअत्र कुशलम् तत्रास्तु !
कभी-कभी आप खुद ही कहें-खुद की सुनें,गाएं भी तो सिर्फ अपने लिए गाएं और मुस्कुराएं भी तो सिर्फ अपने लिए मुस्कुराएं…
बहुत अलग सोच है यह तो …
लेकिन एकांत मिलना भी तो बड़ी बात है … मेरे लिए तो किसी से छुपकर मोबाइल पर बात करने में भी हफ़्तों निकल जाते हैं … :)
शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार
इस ब्लॉग का आज ही अनुसरण किया है.
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सुन्दर बात बताई
लेकिन मज़ा तो तब है जब कभी-कभी आप खुद ही कहें-खुद की सुनें,गाएँ भी तो सिर्फ अपने लिए गाएँ और मुस्कुराएँ भी तो सिर्फ अपने लिए मुस्कुराएँ--सच में बड़ा मज़ा आता है कि सामने वाला सोंचे और ये अंदाजा लगाये कि आप किस बात पर मुसकुरा रहें हैं ?
खुद से संवाद खुद की पहचान को संवारता है.
सामनेवाले की कोई फ़िक्र न करें.
क्यूंकि सामनेवाले में भी फिर अपना प्रतिबिम्ब दिखाई देने लगेगा.
मै ,तू या वो सब में ही तो बसेरा है उसका.
वाह ....कितनी बारीकी से आप गाते हुए बाथ -रूम तक पहुँच गयी ! ऐसे जगहों पर लोग सिर्फ और सिर्फ अपने लिए ही गाते है ! अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंagree with you :)
जवाब देंहटाएंवाह . देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग रहिये.
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